Monday, January 16, 2017

टीचिंग शाॅप की अनुमति नहीं

दिल्ली के सरकारी स्कूलों में नये कमरे बनने, इंफ्रास्ट्रक्चर सुधरने, टीचर्स और प्रिंसिपल्स की ट्रेनिंग, प्रिंसिपल्स के अधिकार बढ़ाने, मेंटर टीचर्स, मेगा पीटीएम, समर कैंप आदि के बाद सुखद परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। इसकी शुरुआत बजट बढ़ाने से हुई थी। आज दिल्ली देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जो अपने बजट का एक चौथाई हिस्सा (24 परसेंट) शिक्षा पर खर्च कर रहा है। हालांकि अभी सरकारी स्कूलों में बहुत काम होना बाकी है। माहौल और सोच को बदलने के लिए काफी कुछ किया जाना बाकी है।
दिल्ली में स्कूली शिक्षा का एक पहिया प्राइवेट स्कूलों के सहारे चल रहा है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा के नाम पर लंबे समय तक होती रही रस्म अदायगी के बीच क्वालिटी एजुकेशन देने का काम कुछ अच्छे प्राइवेट स्कूलों ने किया। क्वालिटी एजुकेशन को बनाये रखने के लिए मैं हमेशा कुछ प्राइवेट स्कूलों की भूमिका की प्रशंसा करता रहा हूं। शायद यही वजह रही होगी कि पिछले 30-40 वर्षों में जनता की अरबों रुपये की जमीन कुछ प्राइवेट स्कूलों को एकदम मुफ्त में या लगभग मुफ्त में दी गई।
अगर ये जमीन स्कूलों को न दी जाती तो संभवत: यहां सरकारी स्कूल ही बने होते। दिल्ली में करीब 300 स्कूल ऐसे हैं जिन्हें जनता की अरबों रुपये की जमीन इस आशय के साथ दी गई कि उस जमीन पर अच्छा स्कूल चलेगा तो आसपास के इलाके में रहने वाले लोगों के बच्चों को अच्छी पढ़ाई मिलेगी। अच्छा स्कूल बना भी। चला भी। लेकिन आसपास के बच्चों को एडमिशन देने की शर्त हवा में खो गई। हालांकि इन 298 स्कूलों को जमीन देते वक्त एलॉटमेंट लेटर में ये शर्त स्पष्ट रूप से लिख दी गई थी कि ये स्कूल नेबरहुड के बच्चों को एडमिशन देने से मना नहीं करेंगे। लेकिन फिर भी वर्षों तक इस शर्त को नजरअंदाज किया गया। इन स्कूलों में दिल्ली के बहुत से प्रभावशाली लोगों के बच्चे पढ़ते हैं। अमीर से अमीर लोग यहां अपने बच्चों का एडमिशन कराने के लिए लाखों रुपये का डोनेशन देते हैं। प्रभावशाली लोगों का वरदहस्त और एडमिशन फीस के रूप में मोटी कमाई के अलावा मुझे कोई और वजह समझ नहीं आती कि इन स्कूलों को सरकारी जमीन तो दी गई, लेकिन जमीन देते वक्त एलॉटमेंट लेटर में लिखी शर्तों को फाइलों में दबाकर रख दिया गया। पिछले दो साल में जब से मैंने इन फाइलों को झाड़ना शुरू किया है तो कई और दिलचस्प पहलू भी सामने आए हैं। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट दिशानिर्देशों के बाद भी जमीन एलॉटमेंट लेटर में लिखी शर्तों को लागू करने की जहमत नहीं उठाई गई। 1997 में स्कूलों को मुफ्त जमीन आवंटन पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था-

“Before parting with this case we think it appropriate to observe that it is high time the Government reviews the entire policy relating to allotment of land to schools and other charitable institutions. Where the public property is being given to such institutions practically free, stringent conditions have to be attached with respect to the user of land and the manner in which schools are other institutions established their own self function. The conditions imposed should be consistent with public interest and should always stipulate that in case of violation of any of those conditions, the land shall be resumed by the Government. Not only such conditions should be stipulated but constant monitoring should be done to ensure that those conditions are being observerded in practice. While we cannot say anything about the particular school run by the respondent, its is common knowledge that some of the schools are being totally commercial lines. Huge amount are being charged by way of donations and fees. The question is whether there is any justification for allotting land at throw-away prices to such institutions. The allotment of land belonging to the people at practically no price is meant for serving the public interest, i.e, spread of education or other charitable purpose; it is not meant to enable the allottees to make money or profiteer with the aid of public property. We are sure that the Government would take necessary measures in this behalf in the light of the observations contained herein.”

Reference : Union of India and Another Vs Jain Sabha and Another

दिल्ली में सरकारी जमीन पर चल रहे करीब 450 स्कूलों में से 298 में एलॉटमेंट लेटर में सख्त शर्तें लगाई गई हैं। ये शर्तें प्रमुखत: फीस, एडमिशन, गरीब बच्चों को पढ़ाने से संबंधित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल, 2004 में मॉर्डन स्कूल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के बहुचर्तित फैसले में दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय को आदेश देते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा था कि शिक्षा निदेशक तीन महीने के अंदर यह सुनिश्चित करें कि एलॉटमेंट लेटर की शर्तों का ठीक से पालन हो।

“We are directing the Director of Education to look into letters of allotment issue by the Government and ascertain whether they have been complied with by the schools. The exercise shall be complied with within a period of three months from the date of communication of this judgment to the Director of Education. If in a given case, the Director finds non-compliance with the above terms, the Director shall take appropriate step in this regard.”

Reference : Modern School v Union of India.

इसी फैसले में आगे सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया कि सरकारी जमीन लेने वाले स्कूल एलॉटमेंट लेटर की शर्तें पालन करने के लिए बाध्य हैं।

“So far as allotment of land by the Delhi Development Authority is concerned, suffice it to point out that the same has no bearing with the enforcement of the provisions of the Act and the Rules framed thereunder but indisputably the institutions are bound by the terms and conditions of allotment have been violated by the alottees, the appropriate statutory authorities would be at liberty to take appropriate step as is permissible in law.”

Reference : Modern School v Union of India.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को प्राइवेट स्कूलों ने चुनौती देते हुए रिव्यू अपील दाखिल की थी लेकिन रिव्यू अपील में भी सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि उपरोक्त आदेश नियमानुसार है और स्कूलों को उसका पालन करना ही होगा। रिव्यू अपील पर फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा कि मॉर्डन स्कूल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में दिया गया आदेश दिल्ली स्कूल शिक्षा नियम 177 के प्रावधानों में गैप-फिलिंग के रूप में लिया जाए। यानी रूल 177 को ठीक से पालन करने की दिशा में ही यह आदेश दिया गया है।

“The additional directions given in the judgment of the majority vide para 27 in Modern School do not go beyond Rule 177 but they are part of gap-filling exercise and discipline to be followed by the Management. For example : every school shall prepare balance sheet and profit and loss account. Such conditions do not supplant Rule 177. If reasonable fee structure is the test then transparency and accountability are equally important. In fact, as can be seen from reports of Duggal Committee and the earlier Committee, excessive fees stood charged in some cases despite the 1973 Rules because proper accounting discipline was not provided for in 1973 Rules. Therefore, the further directions given are merely gap fillers. Ultimately, Rules 177 seeks transparency and accountability and the further directions (in para 27) merely bring about that transparency.”

Reference : UNAIDED PRIVATE SCHOOL OF DELHI v DIRECTOR OF EDUCATION

जाहिर है देश की सर्वोच्च अदालत का मानना है कि जनता की अरबों रुपये की जमीन मुफ्त अथवा लगभग मुफ्त में लेकर चल रहे प्राइवेट स्कूलों को उस जनता के प्रति और जिम्मेदारी से काम करना होगा। इसके बाद कई और मामलों में प्राइवेट स्कूल इस आदेश से बचने के लिए दायें-बायें से हाई कोर्ट में जाते रहे हैं। लेकिन स्वयं दिल्ली हाई कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि संविधान के अनुच्छेद 141 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून से अलग फैसला हाई कोर्ट द्वारा नहीं दिया जा सकता।

“So far as the question is concerned, Article 141 of the Constitution unequivocally indicates that law declared by Supreme Court shall be binding on all courts within territory of India.”

Reference : A. P. v. M.R. Apparao (2002)

इसके बाद दिल्ली सरकार द्वारा सभी प्राइवेट स्कूलों के लिए जारी नर्सरी एडमिशन गाइडलाइंस को खारिज करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने व्यवस्था दी कि सरकार, प्राइवेट स्कूलों की स्वयत्तता बनाये रखे। इस फैसले को आधार बनाते हुए सरकारी जमीन पर चल रहे प्राइवेट स्कूलों ने फीस बढ़ाने के अधिकार को भी स्वायत्तता से जोड़ने की कोशिश की। लेकिन यहां एक बार फिर दिल्ली हाई कोर्ट ने साफ कर दिया कि सरकारी जमीन पर चल रहे प्राइवेट स्कूलों को अपनी फीस बढ़ाने से पहले सरकार से इजाजत लेनी होगी।
हाई कोर्ट ने यहां साफ किया कि सभी स्कूलों के संबंध में फीस तय करने के मामले में दिये गए स्वायत्तता बनाये रखने के फैसले को इन 298 स्कूलों की फीस बढ़ाने की स्वायत्तता से नहीं जोड़ा जा सकता। क्योंकि नर्सरी गाइडलाइंस फैसले में सरकारी जमीन पर चल रहे प्राइवेट स्कूलों की एलॉटमेंट शर्तों का विषय ही सब्जेक्ट में नहीं था।

“The issue regarding the liability of private unaided schools who are allotted the land at concessional rate by DDA was not the subject matter of the batch of petitions decided by the Division Bench.”

Reference : Justice for All v. Govt. (NCT of Delhi)

इसी तरह के एक फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट ने इन प्राइवेट स्कूलों की यह दलील भी खारिज कर दी थी कि एलॉटमेंट लेटर की शर्तें लीज डीड में नहीं थीं। हाई कोर्ट ने जोर देकर कहा कि स्कूलों को डीडीए द्वारा निर्धारित एलॉटमेंट लेटर की शर्तें माननी ही होंगी।

“The terms and conditions of the letter of allotment empowered the authorities to add or impose such other conditions which the allottee was obliged to agree having taken benefit thereof. The terms and conditions of the Lease Deed certainly does not contain the condition of free treatment to poorer Sections of the Society but the same was part of the letter of all allotment itself and they would be applicable to the allotments mutatis mutandis particularly when there is no conflict between them and they duly are supplement to the each other.”

Reference : SOCIAL JURISTS, A LAWYER GROUP v. GOVERNMENT OF NCT OF DELHI & ORS.

इतना ही नहीं, SOCIAL JURIST, A CIVIL RIGHT GROUP बनाम GOVT. OF NCT OF DELHI & ANOTHR मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि शिक्षण संस्थानों को‘टीचिंग शॉप’ की तरह चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

“It is common knowledge that though the there is obligation on the State to provide free and compulsory education to children and the corresponding responsibility of the institution to afford the same, educational institution cannot be allowed to run as ‘Teaching Shops’ as the same would be detrimental to equal opportunity to children. This reality must not be ignored by the State while considering the observations made in this judgment. Hence, we only observe that to avail the benefit of the Right to Education Act to a child seeking for nursery school as well, necessary amendment should be considered by the State. We hope and trust that the Government may take the above observation in the right spirit and act accordingly.”

Reference : SOCIAL JURIST, A CIVIL RIGHT GROUP Vs. GOVT. OF NCT OF DELHI & ANOTHR)
देखा जाए तो सुप्रीम कोर्ट के 2004 के आदेश के बाद तीन महीने के बाद से इन 298 स्कूलों में एलॉटमेंट लेटर की शर्तों के अनुसार ही नर्सरी एडमिशन की प्रक्रिया बनाई जानी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ कारण चाहे जो भी रहे हों। अब जबकि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का पालन करते हुए गाइडलाइंस बनाई हैं तो इन 298 स्कूलों को इनका पालन करना चाहिए। हालांकि ये स्कूल, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनाई गई गाइडलाइंस को चुनौती देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट में गए हैं।