हम सब अपने बच्चों को फेयरीटेल्स पढ़ाते हैं। स्नोव्हाइट, सिंड्रेला। परियों की कहानियां। ये कहानियां भाषा, कल्पना के लिहाज से पढ़ना अच्छा है। बच्चों की पढ़ने में रुचि पैदा होती है। लेकिन जब बच्चा इसको पढ़ रहा है तो कहानी की घटनाओँ का असर उस पर सिर्फ भाषा या शब्द सीखने तक नहीं रहता। ये असर 360 डिग्री रहता है।
अब सोचिये ये कहानियां क्या सिखाती हैं। एक बहुत खूबसूरत लड़की होती है। कोई जादूगरनी या परी होती है। जो उसे बदसूरत या खूबसूरत बना देती है। बदसूरत होना मतलब किस्मत खराब होना। और खूबसूरत होना मतलब- अच्छे दिन। सपनों का राजकुमार मिल जाना। और बदसूरत या खूबसूरत होना इन कहानियों में सिर्फ शारीरिक सौंदर्य के संदर्भ में होता है।
तो ऐसी कहानियां मन पर क्या असर डाल रही हैं। क्या ये बच्चे के अंदर सुंदर होने और दिखने की चाहत पर जोर नहीं दे रहीं? क्या ये नैन-नक्श के मापदंड पर सुंदर नहीं माने-जाने वाले बच्चों के अंदर कुंठा भाव पैदा नहीं कर रही हैं? क्या इन्हें पढ़ने वाला हर बच्चा और विशेषकर लड़कियां किसी भी कीमत पर सुंदर होने की चाहत में नहीं डूब जाते हैं?भले ही उसके लिए फेयर एंड लवली लगानी पड़े।
हमें पता ही नहीं है हम अपने एजुकेशन में क्या गलती कर रहे हैं। हमने अपने बच्चों के अंदर हीन भावना डाल दी कि अगर आप खूबसूरत नहीं हैं तो खुशकिस्मत नहीं हैं।
फिर जैसे ही वो यंग एज में आता है ...उसके बाद मार्केट खड़ा है ...फेयर एंड लवली लेकर...गोरेपन की तमाम तरह की क्रीम और हीन भावना की चेतावनी देते विज्ञापन साथ में।
अब सोचिये ये कहानियां क्या सिखाती हैं। एक बहुत खूबसूरत लड़की होती है। कोई जादूगरनी या परी होती है। जो उसे बदसूरत या खूबसूरत बना देती है। बदसूरत होना मतलब किस्मत खराब होना। और खूबसूरत होना मतलब- अच्छे दिन। सपनों का राजकुमार मिल जाना। और बदसूरत या खूबसूरत होना इन कहानियों में सिर्फ शारीरिक सौंदर्य के संदर्भ में होता है।
तो ऐसी कहानियां मन पर क्या असर डाल रही हैं। क्या ये बच्चे के अंदर सुंदर होने और दिखने की चाहत पर जोर नहीं दे रहीं? क्या ये नैन-नक्श के मापदंड पर सुंदर नहीं माने-जाने वाले बच्चों के अंदर कुंठा भाव पैदा नहीं कर रही हैं? क्या इन्हें पढ़ने वाला हर बच्चा और विशेषकर लड़कियां किसी भी कीमत पर सुंदर होने की चाहत में नहीं डूब जाते हैं?भले ही उसके लिए फेयर एंड लवली लगानी पड़े।
हमें पता ही नहीं है हम अपने एजुकेशन में क्या गलती कर रहे हैं। हमने अपने बच्चों के अंदर हीन भावना डाल दी कि अगर आप खूबसूरत नहीं हैं तो खुशकिस्मत नहीं हैं।
फिर जैसे ही वो यंग एज में आता है ...उसके बाद मार्केट खड़ा है ...फेयर एंड लवली लेकर...गोरेपन की तमाम तरह की क्रीम और हीन भावना की चेतावनी देते विज्ञापन साथ में।
क्या बच्चों के लिये किस्से कहानियों का रास्ता ही ज़रूरी है, सच्ची और अच्छी घटनाएं इसका विकल्प हो सकती है
ReplyDeleteक्या बच्चों के लिये किस्से कहानियों का रास्ता ही ज़रूरी है, सच्ची और अच्छी घटनाएं इसका विकल्प हो सकती है
ReplyDeleteयही चीज़ फ़िल्मों में भी बार बार दोहरायी जाती है !!! अमीर घर का हीरो-हीरोईन और उनकी अमीरी के जलसे !!!! मेकअप से लथबथ ऐक्ट्रेसेज़ ! लोगों को एक काल्पनिक ग्लैमर वर्ल्ड में ही रखती है ! ज़मीनी हक़ीक़तों को वे फिर उसी नज़रिए से देखते हैं !! और समाज में एक विभाजन होने लगता है !!! नए लोग और पुराने लोग !!! ये पूरा फ़ैशन और कोसमेटिक मार्केट का चक्रव्यूह है !!! फ़ेस्बुक ट्विटर को ही लोग सच समझते है ! एक वर्चूअल वर्ल्ड में ही जीने लगते हैं !!! "सब बदल रहा है" के नाम पर एक सोचा समझा षड्यंत्र है !!!
ReplyDeleteisiliye Bharat ki Lokkathaye ,Hitopadesh, Panchtantra, Tenalirama, aur bhi na jaane kitna baal sahitya hai Bharat desh mein jo ki Shiksha ke saath sath bacche ka IQ badata hai Sanskaar deta hai , Education system aur syllabus mein rakhna bahut jaroori hai......Moral science ki books mein bhi Foreign ki stories jaayada hoti hai, hamare desh ki to khud ki moral values itnii jaayada hai ki hum pure World ko sikha sakte hai , aur ye sikhne se hum Gawar nahi more valuable educated karenge apne baccho ko .......to please ye apne system aur syllabus mein include karne ki koshish kare.
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