दुनिया फॉरवर्ड लुकिंग सोसाइटी यानी आगे की ओर देखने वाले समाज के सहारे चलती है। भविष्य पर नजर रखने वाले समाज के लोग ही सफल कहला सकते हैं। मैं एक दार्शनिक को सुन रहा था। उसने उदाहरण दिया कि समाज के आगे और पीछे देखने में कार के शीशों जितना अनुपात होना चाहिए। जैसे- अगर कार को आगे चलाना है तो उसका आगे देखने वाला शीशा बड़ा होना चाहिए। और पीछे देखने वाला शीशा उसके मुकाबले बहुत छोटा होना चाहिए। अगर कार चलाते वक्त हम पीछे देखने का शीशा बड़ा कर लें और आगे देखने वाले शीशे को एकदम छोटा कर दें, तो दुर्घटना का होना तय है।
यही दुर्घटना हमारे यहां लगातार हो रही है। हमने भी आगे देखने वाला अपना शीशा छोटा लगाया है और अतीत में झांकने का शीशा बड़ा है। कम से कम शिक्षा में तो इसे तुरंत बदलने की जरूरत है। हमारे क्लासरूम्स में बैठे स्टूडेंट्स की आदत भविष्य में झांकने की ज्यादा होनी चाहिए, अतीत में कम।
यही दुर्घटना हमारे यहां लगातार हो रही है। हमने भी आगे देखने वाला अपना शीशा छोटा लगाया है और अतीत में झांकने का शीशा बड़ा है। कम से कम शिक्षा में तो इसे तुरंत बदलने की जरूरत है। हमारे क्लासरूम्स में बैठे स्टूडेंट्स की आदत भविष्य में झांकने की ज्यादा होनी चाहिए, अतीत में कम।
Students are keep on trying to watch in front glass but out our teachers and system keep on indicating them on the back mirror
ReplyDelete