एक वक्त जब सलवा जुडूम बहुत चर्चा में था, तो मैं छत्तीसगढ़ गया। वहां मैं एक आदिवासी महिला से मिला। उसका बच्चा स्कूल नहीं जाता था। उसने भेजना बंद कर दिया था। जब मैंने उससे वजह पूछी तो उसका जवाब बहुत सटीक था।
तेंदू पत्ता बीनने वाली उस मां ने बच्चे को स्कूल न भेजने का जो कारण बताया, वह हमारे सारे शिक्षा कार्यक्रम की पोल खोल देता है। उसने कहा- थोड़े दिन स्कूल में पढ़कर मेरा बच्चा तेंदू पत्ता बीनना बंद कर देगा। और आपके पास कोई ऐसा काम नहीं है कि पढ़ाई के बाद उसे दे दो। तेंदू पत्ता बीनेगा नहीं। आपके पास कोई काम-धंधा नहीं है जो पढ़ाई के बाद उसे मिल जाए। तो फिर मैं अपने बच्चे को बेरोजगार क्यों करूं? इसलिए मैंने उसे तेंदू पत्ता बीनने के काम में लगा दिया।
उस आदिवासी मां की बात हमारी सारी शिक्षा नीति पर एक करारा तमाचा है।
तेंदू पत्ता बीनने वाली उस मां ने बच्चे को स्कूल न भेजने का जो कारण बताया, वह हमारे सारे शिक्षा कार्यक्रम की पोल खोल देता है। उसने कहा- थोड़े दिन स्कूल में पढ़कर मेरा बच्चा तेंदू पत्ता बीनना बंद कर देगा। और आपके पास कोई ऐसा काम नहीं है कि पढ़ाई के बाद उसे दे दो। तेंदू पत्ता बीनेगा नहीं। आपके पास कोई काम-धंधा नहीं है जो पढ़ाई के बाद उसे मिल जाए। तो फिर मैं अपने बच्चे को बेरोजगार क्यों करूं? इसलिए मैंने उसे तेंदू पत्ता बीनने के काम में लगा दिया।
उस आदिवासी मां की बात हमारी सारी शिक्षा नीति पर एक करारा तमाचा है।
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