मैं जब स्कूलों में जाता हूं तो कई जगह छठीं, सातवीं, आठवीं, नवीं के बच्चे अपनी टेक्स्टबुक नहीं पढ़ पाते। एक बार मैं एक स्कूल में गया था। वहां की बिल्डिंग बहुत शानदार थी। साफ-सफाई थी। स्कूल में ग्रीनरी थी। प्रिसिंपल बहुत डायनेमिक और एनर्जेटिक थीं। पर जब मैं 10वीं के क्लासरूम में गया तो मुझे बहुत दुख हुआ। क्लासरूम में एक कोने में तीन लीव एप्लीकेशन टंगी हुईं थी। मैंने उठाया तो देखा कि वे तीनों एप्लीकेशन हिंदी में थीं। वे बच्चे हिंदी मीडियम के थे। लेकिन उन एप्लीकेशन में कई गलतियां थीं। कोई बच्चा शादी में जाने के लिए छुट्टी मांग रहा था तो उसमें ‘शादी’ में मात्रा गलत थी। एप्लीकेशन में ‘आपकी कृपा होगी’ लिखा था लेकिन ‘आपकी’ में मात्रा गलत थी। फिर मैंने उस क्लास के बच्चों से यही शब्द अपनी नोटबुक में लिखने के लिए कहा तो करीब 20 फीसदी बच्चों ने ‘शादी’ और ‘आपकी’ में गलत मात्राएं लगाईं। विद्यालय शब्द करीब 50 फीसदी बच्चों ने गलत लिखा। फिर मैंने बच्चों से ब्राह्मण शब्द लिखने को बोला तो करीब 70 फीसदी बच्चों ने गलत लिखा। ये हिंदी मीडियम की 10वीं क्लास के एक अच्छे स्कूल की स्थिति है।
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