दिल्ली के शिक्षा मंत्री का पदभार संभालने के बाद मैंने प्रधानाचार्यों के साथ संवाद शुरू किया। छोटे-छोटे समूहों में भी संवाद हुए और व्यक्तिगत भी। स्कूल विजिट के दौरान जब स्कूलों में मौजूद कमियों को लेकर प्रधानाचार्यों से बात की तो पता चला कि उनको बहुत छोटे-छोटे कामों के लिए भी स्वतंत्रता नहीं है। बहुत छोटे-छोटे कामों के लिए उनको शिक्षा विभाग के सीनियर अफसरों के पास फाइल भेजनी पड़ती है। ये फाइलें इस टेबल से उस टेबल तक चलती रहती हैं और स्कूलों में हालात जस के तस बने रहते हैं। मुझे आश्चर्य हुआ कि जिस प्रधानाचार्य के हाथ में हम अपने हजारों बच्चों का भविष्य सौंप देते हैं, उस पर हमारा सिस्टम 5 से 10 हजार रुपये के लिए भरोसा नहीं करता। ये तो ठीक नहीं है।
इसलिए मैंने परंपराओं को तोड़कर प्रधानाचार्यों के अधिकारों को बढ़ाया। प्रधानाचार्य एक स्कूल का लीडर होता है और अगर लीडर के पास अधिकार ही नहीं होंगे तो वो फैसले कैसे ले पाएगा? प्रधानाध्यापकों की फाइनेंशियल पावर बढ़ाने के लिए मैंने एक विशेष दिशानिर्देश जारी किया ताकि स्कूल से संबंधित सामान्य कार्यों की हर फाइल उन्हें उप-शिक्षा निदेशक के पास न भेजनी पड़े। अब स्कूल संबंधित अधिकतर कार्यों पर निर्णय लेना प्रधानाध्यापक के अधिकार क्षेत्र में है।
इसलिए मैंने परंपराओं को तोड़कर प्रधानाचार्यों के अधिकारों को बढ़ाया। प्रधानाचार्य एक स्कूल का लीडर होता है और अगर लीडर के पास अधिकार ही नहीं होंगे तो वो फैसले कैसे ले पाएगा? प्रधानाध्यापकों की फाइनेंशियल पावर बढ़ाने के लिए मैंने एक विशेष दिशानिर्देश जारी किया ताकि स्कूल से संबंधित सामान्य कार्यों की हर फाइल उन्हें उप-शिक्षा निदेशक के पास न भेजनी पड़े। अब स्कूल संबंधित अधिकतर कार्यों पर निर्णय लेना प्रधानाध्यापक के अधिकार क्षेत्र में है।
Thank you sir
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