सबसे ज्यादा अफसोस मुझे विज्ञान की क्लास में जाकर होता है। विज्ञान हम किसलिए पढ़ाते हैं?सिर्फ डॉक्टर-इंजीनियर या वैज्ञानिक की नौकरी करने के लिए। विज्ञान के छात्र की अगर सोच वैज्ञानिक नहीं हुई तो विज्ञान पढ़ना-पढ़ाना बेकार है। अगर इंजीनियरिंग का कोई स्टूडेंट्स ये मानता है कि हनुमान चालीसा पढ़ने से वो एग्जाम में पास हो जाएगा तो मान लीजिए उसकी पढ़ाई बेकार हो गई। मैं धार्मिक परंपराओं का विरोध नहीं हूं। उनका अपना महत्व है। उनकी अपनी जगह है। लेकिन ये भी जरूरी है कि हमारे बच्चों के दिमाग में ये बिलकुल स्पष्ट हो कि एग्जाम में बेहतर नंबर लाने के लिए पढ़ाई की जरूरत होती है। पूजा-पाठ-जाप से अच्छे नंबर नहीं मिलते। और अगर साइंस के छात्र की सोच साइंटिफिक नहीं हो सकती तो फिर किसकी होगी?
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